भारतीय राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित महत्वपूर्ण बातें।
वैज्ञानिकों ने अनेक अध्ययन से पाया कि मोबाइल से निकलने वाला माइक्रोवेव तरंगे स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक होता है।जो आदमी बार- बार अपने मोबाइल को दायां कान से सटाकर ही बात कहता है तो अत्यधिक उपयोग से उसके दाएं कान के पास का बाल सफेद हो जाता है एवं झड़ जाते हैं तथा इसके कारण ब्रेन ट्यूमर, केंसर, स्मृतिक्षय आदि जैसे अनेक रोग हो सकते हैं क्योंकि मोबाइल से निकलने वाला ये माइक्रोवेव तरंगे ब्रेन के कोशिकाओं को स्थाई या अस्थाई रूप से निष्क्रिय कर देते हैं। इससे शरीर लकवाग्रस्त भी हो सकता है।
यदि किसी को मोबाइल अपने कमीज़ कि जेब में रखने की आदत है तो ये माइक्रोवेव तरंगे उसके हृदय की भारी क्षति पहुंचा सकता है। यदि मोबाइल को कमर के जेब में रखने की आदत है तो ये माइक्रोवेव तरंगे उसके किडनी को प्रभावित कर सकता है।
ब्रिटेन की सरकार ने बच्चों को मोबाइल न रखने का सुझाव दिया है क्योंकि ब्रिटेन के युवकों का हड्डी और स्नायुतन्त्र इतना कमजोर होता है कि वे इस माइक्रोवेव तरंगे से पड़ने वाले प्रभाव से नहीं बच सकते हैं।यूरोपीय आयोग भी इस सुझाव से सहमत है।
एक और अध्ययन से पता चला है कि माइक्रोवेव तरंगे नेत्र केंसर का कारण भी बनता है। जर्मन के एसेन विश्वविद्यालय में डॉक्टर स्टांग ने अनेक रोगियों का अध्ययन करने पर पाया कि मोबाइल का उपयोग करने वालों में कैंसर का प्रभाव ज्यादा है।
1710 में डॉक्टर एडवर्ड जेनर भारत में आया और पूरे बंगाल में घूमा. उसके बाद वो अपनी डायरी में लिखता है,”मैंने भारत में आकार ये पहली बार देखा कि चेचक जैसी महामारी को कितनी आसानी से भारतवासी ठीक कर लेते हैं.” चेचक उस समय यूरोप के लोगों के लिए महामारी ही थी. इस बीमारी से लाखों यूरोपवासी मर गए थे. उस समय में वो लिखता है कि यहाँ लोग चेचक के टीके लगवाते हैं. वो लिखता है कि,”टीका एक सुई जैसी चीज़ से लगाया जाता था. इसके बाद तीन दिन तक उस व्यक्ति को थोड़ा बुखार आता था. बुखार ठीक करने के लिए पानी की पट्टियां रखी जाती थीं. तीन दिन में वो व्यक्ति ठीक हो जाता था. एक बार जिसने टीका ले लिया वो ज़िंदगी भर चेचक से मुक्त रहता था.
फिर ये डॉक्टर वापस लन्दन गया. डॉक्टरों की सभा बुलाई. सभा में भारत में चेचक के टीके की बात बताई. जब लोगों को यकीन नही हुआ तो वो उन सभी डॉक्टरों को अपने खर्च पर भारत लाया. यहाँ उन लोगों ने भी टीके को देखा. फिर उन लोगों ने भारतीय वैद्यों से पूंछा कि इस टीके में क्या है? तो उन वैद्यों ने बताया कि जो लोग चेचक के रोगी होते हैं हम उनके शरीर का पस निकाल लेते हैं और सुई की नोंक के बराबर यानि कि बहुत ज़रा सा पस किसी के शरीर में प्रवेश करा देते हैं. और फिर उस व्यक्ति का शरीर इस रोग की प्रतिरोधक क्षमता धारण कर लेता है.
डॉ.ऑलिवर आगे लिखता, “जब मैंने इन वैद्यों से पूंछा कि आपको ये सब किसने सिखाया? तो वे बोले कि हमारे गुरु ने. उनके गुरु को उनके गुरु ने सिखाया. मेरे अनुसार कम से कम डेढ़ हज़ार(1500) वर्षों से ये टीका भारत में लगाया जा रहा है.”
डायरी के अंत में वो लिखता है, “हमें भारत के वैद्यों का अभिनन्दन करना चाहिए कि वे निशुल्क रूप से घरों में जा-जाकर लोगों को टीका लगा रहे हैं. हम अंग्रेजों को इन वैद्यों ने बिना किसी शुल्क के ये विद्या सिखाई है, हमें इनका जितना हो सके उतना आभार करना चाहिए.”।